भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आस्था / धूप के गुनगुने अहसास / उमा अर्पिता

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:32, 8 फ़रवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमा अर्पिता |अनुवादक= |संग्रह=धूप ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारी यादों के बोझ से
जब-जब मेरे हृदय का
ज्वालामुखी फटा है, तब-तब
उससे दर्द का एक
गर्म स्रोत बह निकला है।
जानते हो...
आज तक
मैंने उसे जमने नहीं दिया,
इस आस्था के साथ कि
कभी तो तुम्हारा भाव-स्रोत भी
इससे आ मिलेगा और तब
हम दोनों--
पीछे के महकते लता-कुंजों में टँगी
उन शामों को गिनेंगे, जो
हमारे कहकहों से लदी हैं,
ऐसे में
शाखाओं से झाँकता सूरज
हम पर व्यंग्य से नहीं हँसेगा
और हम
अपने सपनों को
खुलकर जी सकेंगे।