भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नफ़रत के परदे में / उत्तमराव क्षीरसागर
Kavita Kosh से
Uttamrao Kshirsagar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:02, 8 फ़रवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उत्तमराव क्षीरसागर |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया)
आँधियाँ ठिठुरती हुई
काँपती हुई
थ र थ रा ती हुई
एक बुज़ुर्ग आवाज़ की कडक
महँदी आसमानों में रची
बादलों में काजल लगा
चाँद माथे पर सजा, पूरा का पूरा
गोल
पीला - पीला चौदहवीं का
नफ़रत के परदे में
चली तलवारें
चमक - चमक उट्ठा
सफ्फ़ाक !
प्रेम...
पुनवा फागुनी
ख़ूब रँगी और ख़ूब रँगी
एक लहूलुहान रात
- 1999 ई0