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सामने तुम हो सामने हम हैं बीच में शीशे की दीवार / रमेश 'कँवल'

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सामने तुम हो, सामने हम हैं, बीच में शीशे की दीवार
रंगे-वफ़ा झलके आंखों में, लेकिन हो कैसे इज़हार

गूंगा-सा मैं, तुम भी चुपचुप, दिल में है तूफ़ान
बपा कोर्इ ये खामोशी तोड़े, चुप हो जायेगा संसार

दम लेने को छांव़ में उल्फ़त की जब इक पल ठहर गया
छोड़ चले सब साथी मेरे, उनको जह़र लगाये प्यार

हुस्न की मांग में चांद सितारे रक्सकुनां1 हैं शामो-सहर2
लेकिन मेरा इश्क़ अभी तक पहने है कांटो का हार

सावन के बादल भी अपना रूप दिखाकर जाते है
रक्स कुनां शोलों के संग मे झूमती है जब कभी बयार

ज़ेरे-फ़लक3 रहकर भी अपनी आंख लगी थी सू-एफ़लक4
आखिरकार महो-अख़्तर5 से हम भी पत्थर हो गये यार

मेरी जब बारी आर्इ तो रूठ गया मुझ से अल्लाह
आह! 'कंवल' ने तो मांगा था तुमसे बस सावन का प्यार

1. नृत्यशील 2. सुबहशाम 3 . आकाशकेनीचे 4. आकाशकीओर 5. चांदसितारा