Last modified on 23 फ़रवरी 2014, at 02:19

अब मेरे जाने का वक़्त है.../ ग्योर्गोस सेफ़ेरिस

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:19, 23 फ़रवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ग्योर्गोस सेफ़ेरिस |अनुवादक=अमृ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

...अब मेरे जाने का वक़्त है ।
मैं एक देवदारु वृक्ष को जानता हूँ
जो समुद्र पर निकट झुका हुआ है ।
दोपहर के समय
वह थके हुए शरीर को
हमारे जीवन जितनी ही छाया देता है
और शाम को
इसकी नुकीली पत्तियों के बीच से
बहती हुई हवा एक ऐसे
विलक्षण गीत का आरम्भ करती है
मानो वह आत्माओं का हो,
जिन्होंने मृत्यु का अन्त कर दिया हो,
ठीक उसी क्षण जब वे
त्वचा और होंठ बनना शुरू करती हैं ।

एक बार मैं पूरी रात
इस वृक्ष के नीचे जागता रहा ।
सुबह के समय मैं नया था,
मानो मुझे अभी-अभी
खोद कर निकाला गया हो ।

यदि कोई केवल इस तरह जी सके,
तो कोई बात नहीं ।