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ख़ामोशी / धीरेन्द्र अस्थाना
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दिल रो उठे फिर से,
न छेड़ो ऐसा साज कोई!
किसी तमन्ना पे तुझको,
हो न जाय ऐतराज कोई !
आज भी मोहब्बत को
यूँ ही रहने दो पाकीज़ा !
बेहतर है ख़ामोशी लबों की,
बयाँ न हो जाय राज कोई !