Last modified on 26 फ़रवरी 2014, at 15:48

जब हकीकत सामने आयेगी / धीरेन्द्र अस्थाना

Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:48, 26 फ़रवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरेन्द्र अस्थाना }} {{KKCatGhazal}} <poem>जिन्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जिन्दगी खुद को कब तक आईने से बहलाएगी !
क्या हश्र होगा जब हकीकत सामने आयेगी !

जब-जब हालातों में होगा इम्तिहान तेरे सब्र का ,
राहों की मुश्किलें दास्ताँ-ए-कोशिश बताने आयेंगी !

गुजरती तो जा रही जिन्दगी भटकती राहों से ,
तेरी हसरतें हीं तेरे जज्बे को आजमाने आएँगी !

कब्रगाह तक पहुँचने से पहले तेरे जनाजे के ,
उस रोज़ कयामत सांसों का हिसाब लगाने आयेगी !

मयस्सर न होगा कतरा -ए- रहम तुझे उस रोज़ ,
मंजिल करीब होगी ,मौत तेरा साथ निभाने आयेगी !

जिन्दगी खुद को कब तक आईने से बहलाएगी !
क्या हश्र होगा जब हकीकत सामने आयेगी !