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तुम्हारा शहर / केशव तिवारी
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बेतवा के पुल पर खड़ा मैं
तुम्हारे शहर को देखता हूँ
दो नदियों के बीच बसा ये
चाँदनी रात में
किसी तैरते हुए
जलमहल-सा दिखता है
और घर की छत पर खड़ी तुम
एक जलपरी-सी
इसी शहर की टेढ़ी-मेढ़ी गलियों से गुज़रते
तुम हुई होगी युवा
किसी को पहली बार देख कर
चमकी होगी नज़र
इसी शहर में है कल्पवृक्ष
जिसके नीचे खड़ी हो कर
देखा होगा उद्दाम यमुना को
महसूस की होगी तटबन्धों की सिहरन
बाहर से कितना शान्त
भीतर से कितना बेचैन
तुम्हारी ही तरह
ये तुम्हारा शहर ।