भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कौन थकान हरे जीवन की / गिरिजाकुमार माथुर

Kavita Kosh से
Sandeep dwivedi (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 23:16, 24 नवम्बर 2007 का अवतरण (New page: कौन थकान हरे जीवन की? <br><br> बीत गया संगीत प्यार का,<br> रूठ गयी कविता भी मन की । ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कौन थकान हरे जीवन की?

बीत गया संगीत प्यार का,
रूठ गयी कविता भी मन की ।

वंशी में अब नींद भरी है,
स्वर पर पीत सांझ उतरी है
बुझती जाती गूंज आखिरी

इस उदास बन पथ के ऊपर
पतझर की छाया गहरी है,

अब सपनों में शेष रह गई
सुधियां उस चंदन के बन की ।

रात हुई पंछी घर आए,
पथ के सारे स्वर सकुचाए,
म्लान दिया बत्ती की बेला
थके प्रवासी की आंखों में
आंसू आ आ कर कुम्हलाए,

कहीं बहुत ही दूर उनींदी
झांझ बज रही है पूजन की ।
कौन थकान हरे जीवन की?