भरे जंगल के बीचो बीच
न कोई आया गया जहां
चलो हम दोनों चलें वहां
जहां दिन भर महुआ पर झूल
रात को चू पड़ते हैं फूल
बांस के झुरमुट में चुपचाप
जहां सोये नदियों के कूल
हरे जंगल के के बीचो बीच
न कोई आया गया जहां
चलो हम दोनों चलें वहां
विहंग मृग का ही जहां निवास
जहां अपने धरती आकाश
प्रकृति का हो हर कोई दास
न हो पर इसका कुछ आभास
खरे जंगल के के बीचो बीच
न कोई आया गया जहां
चलो हम दोनों चलें वहां