माता ! एक कलख है मन में, अंत समय में देख न पाया
आत्मकीर के उड़ जाने पर बची शून्य पिंजर सी काया ।
और देख कर भी क्या करता? सब वि
माता ! एक कलख है मन में, अंत समय में देख न पाया
आत्मकीर के उड़ जाने पर बची शून्य पिंजर सी काया ।
और देख कर भी क्या करता? सब वि