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मधुवन का यौवन / गोपालदास "नीरज"

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नष्ट हुआ मधुवन का यौवन।

जो थे मधुमय अमृत लुटाते
जग जीवन का ताप मिटाते
वही सुमन हैं आज ढूँढ़ते जग के कण-कण में दो जल-कण।
नष्ट हुआ मधुवन का यौवन।

कल जो तरू की स्वर्ण-शिखा पर
थे अति सुदृढ़ और सुन्दर वर
आज उन्हीं नीड़ों को देखो, लूट लिया झंझा ने तृण-तृण।
नष्ट हुआ मधुवन का यौवन।

मधुप जा रहा था सुमनों पर
किन्तु प्रलय-झोंकों में पड़ कर
फ़ूलों के बदले शूलों से उलझ गया उसका प्यासा तन।
नष्ट हुआ मधुवन का यौवन।