रात अकेली न थी
जैसे सचमुच कोई न था रात के साथ
एक एक अनेक सपने थे
हर सपना जानता था कि तारे भी हैं
सपने अकेले न थे
जैसे सचमुच कोई तारा न था किसी सपने के साथ
ग़म भी अकेले न थे
सुबह और तेज़ धूप साथ-साथ
जैसे सचमुच धूप न थी सुबह के साथ
तुम्हारा निर्णय और तुम साथ आए
दोनों को जाना ही था साथ
जब से तुम गई हो
आती हो तुम हर रात
जैसे सचमुच तुम नहीं आती हो
मैं दरवाज़ों की ओर जाना चाहकर भी नहीं जाता
बारिश होती है तुम्हारे साथ
जैसे कोई बारिश सचमुच नहीं होती
मैं सचमुच तुम्हें लेने बाहर नहीं आता
अन्दर वापस जाता हूँ
जैसे सचमुच नहीं जाता
वे दिन जो थे सच थे
अकेले होते थे हम साथ साथ
रातें थीं ग़मज़दा
जब लेते थे ख़ुशियाँ बाँट
नींद होती थी वह भी रात
जब तुम नहीं होती थी साथ
तुम कहाँ किधर होती थी
हमेशा मुझे पता न होता था
अकेले होते थे हम साथ-साथ
अकेलापन था धरती का साथ
तेज़ धूप में तपता है कमरा
गर्म हवा हल्की हो गई है इतनी
हर साँस भारी होती जाती है
साँस की दूरी बढ़ती है
सुबह-सुबह कोई रोता है
जैसे सचमुच सुबह कोई नहीं रोता है ।