Last modified on 9 मार्च 2014, at 20:02

सिर्फ़ एक जीवन / मारिन सोरस्क्यू

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:02, 9 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मारिन सोरस्क्यू |अनुवादक=मणिमोह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दोनों हाथों से थामो
रोज़ की यह ट्रे
और आगे बढ़ा दो
इस काउन्टर से

यहाँ पर्याप्त सूर्य है
हर आदमी के लायक
यहाँ पर्याप्त आसमान है
और चन्द्रमा भी पर्याप्त है

इस धरती से फूटती है
एक सुगन्ध
सौभाग्य की, ख़ुशियों की, सौन्दर्य की
जो तुम्हारी नासिका को
मदमस्त करती है

इसलिए कंजूसों की तरह
सिर्फ़ अपने लिए मत जियो
कुछ भी हासिल नहीं होगा
उदाहरण के लिए, सिर्फ़ एक जीवन से
तुम पा सकते हो
सबसे ख़ूबसूरत स्त्री
साथ ही एक बिस्कुट