Last modified on 13 मार्च 2014, at 09:31

मेरा कितना पागलपन था / गोपालदास "नीरज"

Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:31, 13 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपालदास "नीरज" |अनुवादक= |संग्रह=ग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरा कितना पागलपन था!

मादक मधु-मदिरा के प्याले
जाने कितने ही पी डाले
पर ठुकराया उस प्याले को, जिससे था मधु पीना सीखा।
मेरा कितना पागलपन था!

जिस जल का पार नहीं पाया
मँझधार मुझे उसका भाया
फ़िर उसके रौरव में अपने प्राणों का रव खोना सीखा।
मेरा कितना पागलपन था!

जो मेरे प्राणों में निशदिन मीठी मादकता भरता है
दुख पर चिर-सुख की छाया कर प्राणों की पीड़ा हरता है
उस मन के ठाकुर को ठुकरा पत्थर के पग पड़ना सीखा।
मेरा कितना पागलपन था!