भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वे जो मरते नहीं / योसिफ़ ब्रोदस्की
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:26, 27 मार्च 2014 का अवतरण
वे जो मरते नहीं ज़िन्दा रहते हैं
साठ बरस तक, सत्तर तक,
उपदेश देते हैं
लिखते हैं संस्मरण
और उलझ जाते हैं अपनी ही टाँगों में ।
मैं ध्यान से देखता हूँ उनकी मुखाकृति को
जिस तरह देखते थे मिक्लूखा मक्लाई
पास आते वनवासियों के गोदने को ।
मिक्लूखा मक्लाई : प्रख्यात रूसी नृकुलविज्ञानी (1846-1888)