Last modified on 29 मार्च 2014, at 08:45

दिल के कहने पर चल निकला / सदा अम्बालवी

सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:45, 29 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सदा अम्बालवी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> द...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दिल के कहने पर चल निकला
मैं भी कितना पागल निकला

आँसू निकले काजल निकला
रोने से कब कुछ हल निकला

पोंछ सका बस अपने आँसू
कितना छोटा आँचल निकला

चूर हुआ पर झूठ न बोला
दर्पण मुझ सा अड़ियल निकला

दुश्मन के घर बूँदें बरसीं
मेरी छत से बादल निकला

क़त्ल हुई हर सूरत आख़िर
दिल मेरा इक मक़्तल निकला

बाहर से था ख़ार ‘सदा’ तू
अंदर फूल सा कोमल निकला