न्यूयार्क के लिए एक क़ब्र-10 / अदोनिस
अस्सी की उम्र में शुरू करता हूँ अठ्ठारह की. मैंने कहा था कह रहा हूँ ओर दोहरा रहा हूँ
लेकिन बेरूत नहीं सुनता.
यह लाश है एक, जो कपड़े से करती है त्वचा की रंगत की शिनाख्त.
यह लाश है एक, जो स्याही नहीं किताब की तरह पसरी हुई है.
यह लाश है एक, जो शरीर के व्याकरण और शब्द-संरचना
में जिंदा नहीं रहती.
यह लाश है एक, जो धरती को एक नदी नहीं चट्टान की तरह पढ़ती है.
(हाँ मुझे पसंद हैं कहावतें और सूक्तियां, कभी कभी :
अगर आप प्यार में अंधे नहीं हैं तो आप एक लाश हैं).
कह रहा हूँ ओर दोहरा रहा हूँ :
मेरी कविता एक पेड़ है, और दो शाखाओं के बीच,
दो पत्तों के बीच, कुछ नहीं बस
एक तने का मातृत्व है.
कह रहा हूँ ओर दोहरा रहा हूँ :
कविता हवा का गुलाब है. हवा नहीं, लेकिन हवा की तरफ,
परिक्रमा नहीं रास्ता.
इस तरह मैं निरस्त करता हूँ ‘नियम’ को, और हर पल के लिए स्थापित करता हूँ एक नियम.
इस तरह मैं आता हूँ पर छोड़कर नहीं जाता. छोड़कर जाता हूँ कभी न लौटने को.
और जाता हूँ सितम्बर और लहरों की तरफ.
इस तरह मैं क्यूबा को लादे रहता हूँ अपने कन्धों पर और न्यूयॉर्क में पूछता हूँ : कास्त्रो
कब आएगा? और काहिरा और दमिश्क के दरम्यान
मैं इंतज़ार करता हूँ उस तरफ जाने वाली सड़क पर …
स्वतंत्रता से सामना किया गुएवारा ने.
समय के पलंग में वे एक साथ डूबे और गहरी नींद सो गए.
जब वह जगा वह उसे नहीं मिली.
उसने छोड़ दी नींद
और सपने में प्रविष्ट हो गया,
जहां हरेक चीज़ किसी और चीज़ में बदलने की तैयारी करती है.
इस तरह,
रात के पर्दे द्वारा लाई जा रही चरस की तरफ देख रहे एक चेहरे
और एक ठन्डे सूरज द्वारा लाए जा रहे आईबीएम की तरफ देख रहे दूसरे चेहरे के बीच
मैंने क्रोध की नदी लेबनान को भेजा.
एक किनारे पर उठा जिब्रान
और दूसरे पर अडोनिस.
और मैं न्यूयॉर्क छोड़कर इस तरह गया जैसे अपना पलंग छोड़ रहा होऊँ :
स्त्री एक बुझ चुका सितारा थी
और पलंग टूट रहा था पेड़ों में जिनके बीच जगह न थी,
लंगडाती हवा में बदल रहा था
बदल रहा था एक सलीब में जिसे काँटों की कोई याद न थी.
और अब
पहले पानी की कोच में, अरस्तू और देकार्ते को घायल करने वाली
छवियों की कोच में मैं बिखरा हुआ हूँ
अशरफिया और रास बेरूत के बीच, ज़हरत अल-अहसान
और हायेक और कमाल प्रेस के बीच जहां लिखना
तब्दील हो जाता है एक खजूर के पेड़ में और खजूर का पेड़ एक फाख्ते में.
जहां एक हज़ार एक रातें प्रजनन करती हैं,
जहां बूथैना और लैला ग़ायब हो जाती हैं.
जहां जमील यात्रा करता है इस पत्थर से उस पत्थर
और कोई भी इतना खुशकिस्मत नहीं कि कैस को खोज सके.
लेकिन,
शान्ति हो अँधेरे और बालू के गुलाब के लिए
शान्ति हो बेरूत के लिए.