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सबहि सौं पृथक प्रेमपथ पावन / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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सबहि सौं पृथक प्रेमपथ पावन।
सूधौ, सरल, सरस, रस-बरसी स्यामहि सपदि मिलावन॥
बिषय-जगत सौं होय आँधरौ, प्रियतम तन जो धावन।
प्रियतम-सुख सरबस, जीवन निज, सुख-सुधि सहज भुलावन॥
बानी-मन तें परै महारस महाभाव मन-भावन।
प्रेम-सिंधु सोई सहसा रसराज रसिक प्रगटावन॥