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घास / केदारनाथ सिंह

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दुनिया के तमाम शहरों से
खदेड़ी हुई जिप्सी है वह
तुम्हारे शहर की धूल में
अपना खोया हुआ नाम और पता खोजती हुई

आदमी के जनतंत्र में
घास के सवाल पर
होनी चाहिए लंबी एक अखंड बहस
पर जब तक वह न हो
शुरुआत के तौर पर मैं घोषित करता हूं
कि अगले चुनाव में
मैं घास के पक्ष में
मतदान करूंगा
कोई चुने या न चुने
एक छोटी सी पत्ती का बैनर उठाए हुए
वह तो हमेशा मैदान में है।

कभी भी...
कहीं से भी उग आने की
एक जिद है वह.