भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक लोकगीत की अनु-कृति / केदारनाथ सिंह

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:48, 11 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह=स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(जो मैंने मंगल माँझी से सुना था)

आम की सोर पर
मत करना वार
नहीं तो महुआ रात भर
रोएगा जंगल में

कच्चा बांस कभी काटना मत
नहीं तो सारी बांसुरियाँ
हो जाएंगी बेसुरी

कल जो मिला था राह में
हैरान-परेशान
उसकी पूछती हुई आँखें
भूलना मत
नहीं तो सांझ का तारा
भटक जाएगा रास्ता

किसी को प्यार करना
तो चाहे चले जाना सात समुंदर पार
पर भूलना मत
कि तुम्हारी देह ने एक देह का
नमक खाया है।