भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बरखा का एक दिन / अनातोली परपरा

Kavita Kosh से
Linaniaj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 23:23, 1 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=अनातोली पारपरा |संग्रह=माँ की मीठी आवाज़ / अनातोली प...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: अनातोली पारपरा  » संग्रह: माँ की मीठी आवाज़
»  बरखा का एक दिन


हवा बही जब बड़े ज़ोर से

बरसी वर्षा झम-झमा-झम

मन में उठी कुछ ऎसी झंझा

दिल थाम कर रह गए हम


गरजे मेघा झूम-झूम कर

जैसे बजा रहे हों साज

ता-ता थैया नाचे धरती

ख़ुशियाँ मना रही वह आज


भीग रही बरखा के जल में

तेरी कोमल चंदन-काया

मन मेरा हुलस रहा, सजनी

घेरे है रति की माया