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कहता है पका हुआ फल / अमरनाथ श्रीवास्तव
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कहता है पका हुआ फल
देह नहीं है मेरी सीमा
मुझसे है आगामी कल ।
चुभो रहे हैं जैसे पिन
वृन्त पर टिके मेरे दिन
जाने कब कौन सी हवा
ले जाए मेरे पल छिन
स्वागत में आया मेरे
समय लिए त्यौरी पर बल ।
हठयोगी तरु का मैं व्रत
पूर्णकाम है यह तन श्लथ
साथ-साथ चलते हैं अब
ऋतुओं के जितने तीरथ
रस अब तो पंचामृत है
भाव हो गए तुलसी दल ।
अन्तहीन ख़ुशबू का छोर
मंजरियों पर उगती भोर
धुँधली आँखों देखा है
रंग चढ़ी रेशे की डोर
फिर होगी धरती सुफला
साँचे में धूप रही ढल ।