भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मामूली ज़िन्दगी जीते हुए / कुंवर नारायण
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:24, 19 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंवर नारायण |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया)
जानता हूँ कि मैं
दुनिया को बदल नहीं सकता,
न लड़ कर
उससे जीत ही सकता हूँ
हाँ लड़ते-लड़ते शहीद हो सकता हूँ
और उससे आगे
एक शहीद का मकबरा
या एक अदाकार की तरह मशहूर...
लेकिन शहीद होना
एक बिलकुल फ़र्क तरह का मामला है
बिलकुल मामूली ज़िन्दगी जीते हुए भी
लोग चुपचाप शहीद होते देखे गए हैं