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बरसात-3 / जगदीश चतुर्वेदी

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उँगलियाँ थिर

ओंठ में केवल
सुवासित बिजलियों का सुख

साँझ नहाई-सी

मुझे लगती
तुम्हारे चुम्बनों के बाद