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अपने भरोसे से / विपिन चौधरी

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दुःख टकसाल में कुछ और पकने गया था
सुख से कल रात ही तेज झगड़ा हुआ
प्यास को अपना ही होश नहीं रहा
हवा की कौन कहे,
उसका मिजाज ही कई दिशाओं में गुम है
अब मेरे आस-पास
कोई नहीं
अपने भरोसे को पीठ पर लाद कर चल रही हूँ
कभी तेज कभी धीरे