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अनशन पर बैठे हत्यारे/ रामकुमार कृषक
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अनशन पर बैठे हत्यारे भूख मिटाएँगे,
सौ-सौ चूहे खाकर बिल्ले हज को जाएँगे,
गाँधी की लाठी से गाँधी को ही पीटेंगे,
'वैष्णव जन तो तैने कहिए' फिर भी गाएँगे ।
सच्चे साधु तो सच्चे हैं मन को रँगे हुए,
लेकिन ये भगवा चोले को धवल दिखाएँगे,
गोद लिया है अमरीका ने राज समेत इन्हें,
क्लीन शेव भी उसके हाथों हो ही जाएँगे ।
मूँड़ मुँड़ाए सन्यासी भी राजा होते हैं,
खींच लंगोटी भक्त इन्हें पगड़ी पहनाएँगे,
खाल खींच लेंगे विकास की वोट बटोरेंगे,
फिर अपनी ढपली पर अपने गाने गाएँगे ।
वृत्तासुर हैं बहुत देश में सबको समझेंगे,
जन-दधीचियों के हाड़ों से वज्र बनाएँगे,
राज्य भोग कर राष्ट्र चाहिए देवोपम होंगे,
नर हैं निरे, अभी कल पक्के इन्द्र कहाएँगे ।