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शब्द बोलेंगे / राधेश्याम बन्धु

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जो अभी तक
मौन थे, वे शब्द बोलेंगे,

हर महाजन
की बही का, भेद खोलेंगे ।

पीढि़याँ गिरवीं फ़सल के
बीज की खातिर,
लिख रहा है भाग्य मुखिया
गाँव का शातिर !

अब न पटवारी
घरों में युद्ध बोएँगे ।

आ गई खलिहान तक
चर्चा दलालों की,
बिछ गई चौपाल में
शतरंज चालों कीं ।

अब शहर के
साण्ड, फ़सलों को न रौंदेंगे ।

कौन होली, र्इद की
ख़ुशियाँ लड़ाता है ?
औ हवेली के लिए
झुग्गी जलाता है ।

सभी नकली
वोट की दूकान तोड़ेंगे,

जो अभी तक
मौन थे, वे शब्द बोलेंगे ।