जीवन केवल
गीत नहीं है, गीता की है प्रत्याशा,
पग-पग जहाँ
महाभारत है, लिखो पसीने की भाषा ।
हर आँसू को जंग न्याय की
ख़ुद ही लड़नी पड़ती,
हर झुग्गी की वुंफती भी अब
स्वयं भाग्य है लिखती ।
लड़ता है संकल्प
युग में, गाण्डीव की झूठी आशा ।
'भागो मत दुनिया को बदलो’
सूरज यही सिखाता,
हर बेटा है भगतसिंह जब
ख़ुद मशाल बन जाता ।
सदा सत्य का
पार्थ जीतता, यही युद्ध की परिभाषा ।
अख़बारों में रोज़ क्रान्ति की
ख़बर खोजने वालो,
पर पड़ोस की चीख़ें सुनकर
छिपकर सोने वालो ।
हर मानव-बम
इन्क़लाब है, हर झुग्गी की अभिलाषा,
पग-पग जहाँ
महाभारत है, लिखो पसीने की भाषा ।।