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आत्म-निर्वासन / धनंजय सिंह

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कहाँ से कहाँ तक चलकर
कहीं भी न पहुँचने का नाम
मेरे लिए यात्रा है
और जैसे
नींद में चलते रहने का नाम जीवन ।
रास्ते की भीड़
जुलूस और उत्सव की चहल-पहल
पिता के रौब से सहमे
बच्चे की तरह
मुझे डिस्टर्ब नहीं करते
बस-ट्रेन
स्कूल-दफ़्तर और घर से जुडी
कुछ छोटी पद-यात्राओं का
एक बहुत बड़ा नाम है 'दिन' ।
तुम्हारी याद भी
सो जाती है थक कर
चेतना के द्वार पर पहुँच कर
दस्तक देने से पहले ही ।
सुबह-शाम
दूध माँगने और
हाज़िरी लेने वाली बच्ची
बड़ी हो कर
कुछ कवियों-पत्रकारों और
आलोचकों में बदल गई है ।
पुस्तकों-पत्रिकाओं के ढेर से निकल कर
'गुमशुदा की तलाश' के विज्ञापन में
सबसे पहले छपा नाम मेरा है मेरा ....... ।