भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भूख का अधिनियम-दो / ओम नागर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:47, 7 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम नागर |संग्रह= }} {{KKCatRajasthaniRachna}} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)
एक दिन
भूख के भूकंप से
थरथरा उठेंगी धरा
इस थरथराहट में
तुम्हारी कंपकंपाहट का
कितना योगदान
यह शायद तुम भी नहीं जानते
तनें के वजूद को कायम रखने के लिए
पत्त्तियों की मौजूदगी की
दरकार का रहस्य
जंगलों ने भरा है अग्नि का पेट।
भूख ने हमेशा से बनायें रखा
पेट और पीठ के दरमियां
एक फासला
पेट के लिए पीठ ने ढोया
दुनिया भर का बोझा
पेट की तलवार का हर वार सहा
पीठ की ढाल ने।
भूख के विलोम की तलाश में निकले लोग
आज तलक नही तलाश सकें
प्रर्याय के भंवर में डूबती रही
भूख का समाधान।