♦ रचनाकार: ईसुरी
अब रित आई बसन्त बहारन, पान-फूल-फल डारन
हारन-हद्द-पहारन-पारन, धाम-धवल-जल-धारन
कपटी कुटिल कन्दरन छाई, गै बैराग बिगारन
चाहत हतीं प्रीत प्यारे की, हा-हा करत हजारन
जिनके कन्त अन्त घर से हैं, तिने देत दुख-दारुन
ईसुर मौर-झोंर के ऊपर, लगे भौंर गुंजारन ।