भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ईसुरी की फाग-9 / बुन्देली
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:35, 7 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{ KKLokRachna |रचनाकार=ईसुरी }} अब रित आई बसन्त बहारन, पान-फूल-फल डारन हारन-हद...)
♦ रचनाकार: ईसुरी
अब रित आई बसन्त बहारन, पान-फूल-फल डारन
हारन-हद्द-पहारन-पारन, धाम-धवल-जल-धारन
कपटी कुटिल कन्दरन छाई, गै बैराग बिगारन
चाहत हतीं प्रीत प्यारे की, हा-हा करत हजारन
जिनके कन्त अन्त घर से हैं, तिने देत दुख-दारुन
ईसुर मौर-झोंर के ऊपर, लगे भौंर गुंजारन ।