भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रिस्तो / संजय आचार्य वरुण
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:11, 14 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय आचार्य वरुण |संग्रह=मंडाण / न...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अचकची खाय
तोड़ काढ्यो
जद तूं
थारै अर म्हारै बिचाळै रो
हरेक रिस्तो
पण
रिस्तो फेर भी हो
आपां रै बिच्चै....
कोई रिस्तो नीं होवण रो रिस्तो।