भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ताते श्री यमुने यमुने जु गावो / नंददास
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:40, 16 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंददास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad}} <poem>...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ताते श्री यमुने यमुने जु गावो ।
शेष सहस्त्र मुख निशदिन गावत, पार नहि पावत ताहि पावो ॥१॥
सकल सुख देनहार तातें करो उच्चार, कहत हो बारम्बार जिन भुलावो ।
नंददास की आस श्री यमुने पूरन करी, तातें घरी घरी चित्त लावि ॥२॥