भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लाल ललित ललितादिक संग लिये / छीतस्वामी
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:10, 16 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=छीतस्वामी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(उत्सव भोग आये तब)
लाल ललित ललितादिक संग लिये बिहरत वर वसन्त ऋतु कला सुजान।
फूलन की कर गेंदुक लिये पटकत पट उरज छिये हसत लसत हिलि मिलि सब सकल गुन निधान॥१॥
खेलत अति रस जो रह्यो रसना नहिं जात कह्यो निरखि परखि थकित भये सघन गगन जान।
छित स्वामी गिरिवरधर विट्ठल पद पद्म रेनु वर प्रताप महिमा ते कियो कीरति गान॥२॥