भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शब्द / तादेयुश रोज़ेविच

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:48, 8 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=तादेयुश रोज़ेविच |संग्रह=ख़ून ख़राबा उर्फ़ रक्तपा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: तादेयुश रोज़ेविच  » संग्रह: ख़ून ख़राबा उर्फ़ रक्तपात
»  शब्द


शब्दों का इस्तेमाल किया जा चुका है
चुइंगम की तरह उन्हें चबाया जा चुका है
सुन्दर जवान होठों द्वारा
सफ़ेद फुग्गों बुल्लों में बदला जा चुका है

राजनीतिकों द्वारा घिसे-रगड़े गए
उनका इस्तेमाल दांत चमकाने और मुँह की सफाई के लिए
कुल्ले-गरारे में किया गया

मेरे बचपन के दिनों में
शब्दों को मरहम की तरह
घावों पर लगाया जा सकता था

शब्द दिए जा सकते थे उसे
जिसे तुम प्यार करते थे

घिसे- बुझे
अखबार मे लिपटे
शब्द अभी भी संक्रामक हैं ... अभी भी उनसे भाप उठती है
अभी तक उनमे गंध है
वे अभी भी चोट पहुँचाते हैं

माथे के भीतर छुपे हुए
छुपे हुए हृदय के भीतर
छुपे हुए सुन्दर जवान लड़कियों के कपडों के अन्दर
पवित्र पुस्तकों में छुपे हुए
वे अचानक फूट पड़ते हैं
और मार डालते हैं ।

(बिल जॉन्सन के अंग्रेज़ी अनुवाद के आधार पर )