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एक बुढ़िया का इच्छा-गीत / लीलाधर जगूड़ी

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जब मैं लगभग बच्ची थी

हवा कितनी अच्छी थी


घर से जब बाहर को आयी

लोहार ने मुझे दरांती दी

उससे मैंने घास काटी

गाय ने कहा दूध पी


दूध से मैंने, घी निकाला

उससे मैंने दिया जलाया

दीये पर एक पतंगा आया

उससे मैंने जलना सीखा


जलने में जो दर्द हुआ तो

उससे मेरे आंसू आये

आंसू का कुछ नहीं गढाया

गहने की परवाह नहीं थी


घास-पात पर जुगनू चमके

मन में मेरे भट्ठी थी

मैं जब घर के भीतर आयी

जुगनू-जुगनू लुभा रहा था

इतनी रात इकट्ठी थी ।