Last modified on 9 दिसम्बर 2007, at 02:09

कोसल में विचारों की कमी है / श्रीकान्त वर्मा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:09, 9 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीकांत वर्मा }} महाराज बधाई हो; महाराज की जय हो ! युद...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


महाराज बधाई हो; महाराज की जय हो !

युद्ध नहीं हुआ –

लौट गये शत्रु ।


वैसे हमारी तैयारी पूरी थी !

चार अक्षौहिणी थीं सेनाएं

दस सहस्र अश्व

लगभग इतने ही हाथी ।


कोई कसर न थी ।

युद्ध होता भी तो

नतीजा यही होता ।


न उनके पास अस्त्र थे

न अश्व

न हाथी

युद्ध हो भी कैसे सकता था !

निहत्थे थे वे ।


उनमें से हरेक अकेला था

और हरेक यह कहता था

प्रत्येक अकेला होता है !

जो भी हो

जय यह आपकी है ।

बधाई हो !


राजसूय पूरा हुआ

आप चक्रवर्ती हुए –


वे सिर्फ़ कुछ प्रश्न छोड़ गये हैं

जैसे कि यह –

कोसल अधिक दिन नहीं टिक सकता

कोसल में विचारों की कमी है ।