भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चैत्र मास संवत्सर / परमानंददास
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:38, 16 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परमानंददास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)
चैत्र मास संवत्सर परिवा बरस प्रवेस भयो है आज।
कुंज महल बैठे पिय प्यारी लालन पहरे नौतन साज॥१॥
आपुही कुसुम हार गुहि लीने क्रीडा करत लाल मन भावत।
बीरी देत दास परमानंद हरखि निरखि जस गावत॥२॥