भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डोल माई झूलत हैं ब्रजनाथ / परमानंददास
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:13, 16 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परमानंददास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)
डोल माई झूलत हैं ब्रजनाथ ।
संग शिभित वृषभान नंदिनी ललिता विशाखा साथ ॥१॥
वाजत ताल मृदंग झांझ डफ रुंज मुरज बहु भांत ।
अति अनुराग भरे मिल गावत अति आनंद किलकात ॥२॥
चोवा चण्दन बूकावंदन उडत गुलाल अबीर ।
परमनानंद दास बलिहारी राजत हे बलवीर ॥३॥