|
कल रेडियो पर मैंने एक आवाज़ सुनी:
मरियम की आवाज़।
क्या वह रह रही है
लैल्की और सुलाम के दरम्यान हो रहे विस्फोटों के बीच?
बेरूत
जिसके पत्थरों पर मैं टिकाता हूँ अपनी पीठ
बेरूत हकबकाया हुआ है
किसी समुद्री पक्षी की मानिंद
और प्रेमीजन झुलाते हैं अपनी मशीन गनें
शांत हो जाते हैं समुद्र।
बच्चे सुनते हैं एक धोखेबाज़ आवाज़
और दूर कहीं आग लग जाती है
सीसा बन चुके क्षितिज पर चक्कर काटते हैं जहाज़
तुम्हारे वास्ते, मरियम
प्रेमीजन और विस्फोट ...