भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उजाळो / हुसैनी वोहरा

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:12, 17 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हुसैनी वोहरा |संग्रह=मंडाण / नीरज ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जग मांय पसर्योड़ो
अंधारो
जी रैयो
अंधारै री दुनिया मांय
बणग्यो जीवण रो दूजो नांव अंधारो
उजाळा सूं लागै डर
भागै है, लुकै है
करै है अंधारै री आरती
उजाळै री बात सूं
नीं कोई लगाव
अंधारो व्हालो होयग्यो है
उजाळो होयग्यो परायो।
 
आवो! नूंतां उजाळै नैं
करां मांय-बारै उजास
दुनिया नैं दिखावां
उजाळै रो मारग
 
आवो! करां
नेन्ही बाती रो दिवलो।