Last modified on 18 मई 2014, at 16:06

हम नहि आजु रहब अहि आँगन / विद्यापति

Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:06, 18 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विद्यापति |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} {{KKCatMaithiliR...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हम नहि आजु रहब अहि आँगन
जं बुढ होइत जमाय, गे माई।
एक त बैरी भेल बिध बिधाता
दोसर धिया केर बाप।
तेसरे बैरी भेल नारद बाभन ।
जे बुढ अनल जमाय। गे माइ ।।

पहिलुक बाजन डामरू तोड़ब
दोसर तोड़ब रुण्डमाल ।
बड़द हाँकि बरिआत बैलायब
धियालय जायब पराय गे माइ । ।

धोती लोटा पतरा पोथी
सेहो सब लेबनि छिनाय।
जँ किछु बजताह नारद बाभन
दाढ़ी धय घिसियाब, गे माइ। ।

भनइ विद्यापति सुनु हे मनाइनि
दृढ करू अपन गेआन ।
सुभ सुभ कय सिरी गौरी बियाहु
गौरी हर एक समान, गे माइ।।