Last modified on 18 मई 2014, at 16:20

उचित बसए मोर मनमथ चोर / विद्यापति

Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:20, 18 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विद्यापति |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} {{KKCatMaithiliR...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उचित बसए मोर मनमथ चोर। चेरिआ बुढ़िआ करए अगोर।
बारह बरख अवधि कए गेल। चारि बरख तन्हि गेलाँ भेल।
बास चाहैत होअ पथिकहु लाज। सासु ननन्द नहि अछए समाज।
सात पाँच घर तन्हि सजि देल। पिआ देसाँतर आँतर भेल।
पड़ेओस वास जोएनसत भेल। थाने थाने अवयव सबे गेल।
नुकाबिअ तिमिरक सान्धि। पड़उसिनि देअए फड़की बान्धि।
मोरा मन हे खनहि खन भाग। गमन गोपब कत मनमथ जाग।