भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मोरा रे अँगनमा चानन केरि गछिया / विद्यापति

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:10, 18 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विद्यापति |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} {{KKCatMaithiliR...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मोरा रे अँगनमा चानन केरि गछिया, ताहि चढ़ि कुररए काग रे।
सोने चोंच बांधि देव तोहि बायस, जओं पिया आओत आज रे।
गावह सखि सब झूमर लोरी, मयन अराधए जाउं रे।
चओ दिसि चम्पा मओली फूलली, चान इजोरिया राति रे।
कइसे कए हमे मदन अराधव, होइति बड़ि रति साति रे।