भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रिय तोहि नयनन ही में राखूं / रसिक दास
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:18, 20 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसिक दास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad}} <po...' के साथ नया पन्ना बनाया)
प्रिय तोहि नयनन ही में राखूं।
तेरी एक रोम की छबि पर जगत वार सब नाखूं॥१॥
भेटों सकल अंग सांबल कुं, अधर सुधा रस चाखूं॥
रसिक प्रीतम संगम की बातें, काहू सों नही भाखूं॥२॥