भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आत्म विसर्जन / पुष्पिता

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:45, 25 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वसुधा
सूरज से अर्जित करती है
अपना दिवस।

साँसें
हवाओं से
अर्जित करती हैं
अपने लिए धड़कनें।

नदी से
अर्जित करनी पड़ती है
जल और पवित्रता।

ईश्वर से
अर्जित करना पड़ता है
उसका आशीर्वाद।

सूर्य से
अर्जित करते हैं
ताप और ऊर्जा।

वैसे ही
तुमसे अर्जित करते हैं तुम्हें
आत्म-विसर्जन में।