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नयन-गेह / पुष्पिता

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ज़िन्दगी की
पत्र-पेटिका में
चिट्ठी की तरह आए
और ह्रदय का प्रेम-पत्र बन गए।

मीठे उजालेपन में
चाँदनी सारे सितारों की चमक में
समा चुकी होती है जब
चाँद सोता है आँखों में
सपना बन कर।

एकाकीपन की मोमबत्ती की रोशनी में
कभी पिघलते हैं शब्द
और कभी मैं...।

भीतर की साँस रोक कर
शब्दों से खींचती हूँ साँस
पसीने से तर-ब-तर
मन की उमसती कसक को
पसीजी हथेली में रखती हूँ
सुकोमल याद से भरकर

शब्दों की मुट्ठी में है
जादुई यथार्थ
शब्द की ह्रदय-मंजूषा में

गहरे एकांत में
चुपचाप जन्म लेते हैं शब्द
जैसे आधी रात को बदलती है तारीख

दिन बदलने से पहले
हवाओं की साँस ठहर जाती है
क्षण भर को
जब सितारे लिखते हैं नई तारीख।

सूरज,
हर सुबह
नई तारीख में भरता है धूप
ऐसे ही प्रेम
भीतर के अक्षय शब्द-स्रोत को
पूरता है
जैसे पर्वत जनते हैं अपनी स्नेह-सरिता को।

शब्दों की शहदीली चमकी छुअन को
पहचानते हैं ओंठ
जैसे कवि के ओंठ
पहचानते हैं अपनी कविता के शब्द
वैसे ही कविता के अधर
पहचानते हैं कवि के ओंठ
शब्दों की तरह
शब्दों में प्रेम की तरह।