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ख़बर मौसम की यही है / राजेन्द्र गौतम
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अख़बार है यह
या कि नंगा तार बिजली का ?
पूरा शहर ही मर गया
घुट स्याह नफ़रत के धुएँ में
यों लिखा है
मुखपृष्ठ से चल कर गई
परिशिष्ट तक
इन अग्निकाण्डों की कथा है
फिर जल गया दामन
किसी का लाचार तितली का !
करुणा घिरी अन्धी गली में
थी अँधेरे की लगी
कब से जहाँ घातें
कुचला गया विश्वास का तन
वक्त के चक्के तले
चिथड़े हुईं आँतें
मुश्किल हुआ है रोकना
इस बार मितली का ।
आँधी उतर
गिद्धों सरीखी
रेत हर दालान में छितरा गई है
बाढ़ आदमखोर चीते-सी
घुसेगी बस्तियों में
ख़बर मौसम की यही है
फिर सतह पर रक्त है
बीमार मछली का !