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सलोने रूप का 'दरपन' / राजेन्द्र गौतम
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चैत की परछाइयाँ
फिर धूप का 'दरपन' ।
फिर समर्पण
को विवश ये
ऋतुमती मुग्धा हवाएँ हैं
सृजन का संकल्प ले आईं
सभी प्रमदा दिशाएँ हैं
प्यास के
प्रतिबिम्ब-सा थिरका
सलोने रूप का 'दरपन' ।
अमलतासी स्वप्न-से
सब हो गए पूजन
यों अटारी
से कपोतों के झरें कूजन
फिर हरे शहतूत की
डालें झुकीं
फिर कूप का 'दरपन' ।